Ak apahij aurat ki aatma jo aaj bhi bhatak rahi hai – एक अपाहिज औरतकी आत्मा जो आज भी अपनी बच्ची को ढूंढ रही है, यह कहनी काल्पनिक है यह कहानी आपको एक सच्ची भूतिया कहानी का अहसास कराएगी…
अलीपुर में नेशनल लाइब्रेरी शहर की एक और भूतिया जगह है, अगर आप ऐसी कहानियों पर यकीन करते हैं (व्यक्तिगत रूप से, मुझे लगता है कि लाइब्रेरी धरती पर सबसे निराशाजनक जगह हैं)। कई लोग आपको बताएंगे कि जब वे अकेले पढ़ रहे थे तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे वह लाइब्रेरी के आस पास चलने वाले लोगोकी गर्दन पर सांस ले रहा है। अब, मैं इसे एक भूतिया जुनूनी बाध्यकारी विकार वाला भूत कहता हूँ जो व्यक्ति के मरने के बाद भी नहीं मरता। ऐसी भी खबरें आई हैं कि लोगों ने अपने आस-पास आहाते सुनी, लेकिन किसी को नहीं देखा। आस पास वाले ही नहीं बल्कि, लाइब्रेरियन ने भी कुर्सियाँ खींचे जाने की शिकायत की है; जिस कुर्सी पर वे बैठे थे, उसके पन्ने खड़खड़ाने और किताबें गिरने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।
मेरा नाम सुमन दास है में १०वी क्लास में पढ़ती थी पढ़ाकू लोगो में मेरी गिनती की जाती थी मुझे भूतिया कहानियो में बोहोत इंटरेस्ट था जिसके कारन में भूतिया कहानिया पढ़ती रहती थी, यह घटना मेरे साथ एक साल पहले हुई थी। हमारी अंतिम परीक्षाएँ आ रही थीं, और मुझे अभी भी बहुत अधिक तैयारी करनी थी। आमतौर पर, हमारे स्कूल की लाइब्रेरी पाँच बजे तक बंद हो जाती थी,
और मुझे सन्ति से पढाई करनी थी जिसके कारन मेने घर के नजदीक दूसरी लाइब्रेरी जिसका नाम नेशनल लाइब्रेरी थी वह पड़ने जाना तय किया। मेरा घर लाइब्रेरी से ज़्यादा दूर नहीं था, इसलिए घर पर पढ़ाई करने के बजाय, मैंने शांत, शांत लाइब्रेरी में पढ़ाई करना पसंद किया, वहा का प्रोफेसर ज्यादा खड़ूस होने के कारन वह पर बोहोत काम लोग आते थे । उस दिन, मैं 6:00 बजे अपने घर से निकली और जल्द ही परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए लाइब्रेरी पहुँच गयी। बच्चो की बोर्ड की परीक्षा होने के कारन वह लाइब्रेरी रात को 11 बजे तक खुली रहती थी, मैं पढ़ाई में इतना डूबी हुई थी कि मुझे पता ही नहीं चला कि अब 10:00 बज चुके हैं। मैं कभी भी लाइब्रेरी में इतने लंबे समय तक नहीं रुकी थी। आमतौर पर, मैं लगभग 8:00 बजे घर पोहोच जाती थी । 8:00 बजे भी, लाइब्रेरी में कम से कम कुछ छात्र होते थे। लेकिन 10:00 बजे, वहाँ बिल्कुल सन्नाटा था। मेरे पास सिर्फ़ 10 से 15 मिनट का काम बचा था, इसलिए मैंने तय किया कि मैं इसे जल्दी से निपटाकर घर लौट जाउंगी। मैं अपने काम में पूरी तरह खोयी हुई थी, तभी मैंने किसी को लंगड़ाते हुए सुना।
हम्म ?
मैंने जल्दी से अपनी किताबें उठाईं और लाइब्रेरी से बाहर भागी । हमारे स्कूल की लाइब्रेरी के बाहर एक बहुत लंबा गलियारा है। उस गलियारे के अंत में, जब आप दाएँ मुड़ेंगे, तो आपको लाइब्रेरी का निकास द्वार मिलेगा। मैं गलियारे से गुजरी और जल्दी से निकास के पास पहुँच रही थी , तभी मैंने देखा कि गलियारे के अंत में एक महिला खड़ी थी। मुझे नहीं पता था कि वह कौन थी, लेकिन जैसे-जैसे मैं उसके करीब पहुंची, मुझे और भी असहज महसूस होने लगा। मैं इतनी असहज हो गई कि मैंने आवाज़ लगाई, कौन है? जैसे ही मैंने यह कहा, वह कुछ ही सेकंड में चली गई। मैंने राहत की साँस ली और सामने के दरवाज़े से बाहर निकल गयी ।
थकावट और भूख के कारण, मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी लेकिन मैंने देखा कि सड़क, अजीब तरह से, पूरी तरह से खाली थी, जो बेहद अजीब था क्योंकि यह सड़क आम तौर पर बहुत व्यस्त रहती है। रात में भी आप सड़क पर लोगों को चलते हुए देख सकते हैं। घबराहट और डर के कारण मैं चलते हुए ज़मीन की ओर देखति रहि। मैं घर के करीब ही थी कि अचानक मैंने ज़मीन पर एक परछाई देखी जो मेरे आस-पास कोई नहीं होने के बावजूद भी दूर तक फैली हुई थी। जब मैंने अपना सिर उठाया तो मैंने देखा कि मेरे सामने एक महिला चल रही थी।
मुझे वह बहुत अजीब लगी। वह देखने में विकलांग लग रही थी और उसे चलने में परेशानी हो रही थी। मुझे दर भी लग रहा था और चिंता भी हो रही थी के वो कुछ डरावनी चीज़ न हो निकली और किसी और कोई जरुरत मंद औरत निकली तो !!!वह इतनी धीमी गति से चल रही थी कि मेने हिम्मत कर के समय में उसके पास पहुँच गयी। अब मैं उसके इतने करीब थी कि मैं उसे साफ-साफ देख सकती था। उसने फटे-पुराने, गंदे कपड़े पहने हुए थे और उसके हाथ-पैर मुड़े हुए थे। साथ ही, उसके बाल भी बहुत अस्त-व्यस्त दिख रहे थे और बिखरे हुए थे, हवा ना चलने के बावजूद उसके बाल हवा के कारन उड़ रहे थे।
मुझे यह इतना अजीब लगा कि मैं वहीं रुक गयी। मेरा मन बार-बार कह रहा था कि इस महिला के और करीब मत जाओ। मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि मैं उससे आगे निकल जाऊँ और आगे चलूँ।
वह अचानक मेरी तरफ मुद गई और बोली “मेरी बेटी कहाँ है?”
मेरे रोंगटे खड़े होंगे, वह आवाज़ भारी और गुस्से वाली थी। उसका मुँह अँधेरे में थोड़ा दिख रहा था, उसका मुँह एक साइड से चपटा हो गया था, जैसे किसी ने एक साइड से कुछ मारा हो, और एक तरफ की आँख नहीं थी।
सदमे के कारण मैं एक शब्द भी नहीं बोल पायी। मेरा दिमाग सुन्न हो गया। मुझे नहीं पता था कि उसके अजीब सवाल का जवाब कैसे दूँ। डर के मारे, मैंने बहुत दूर उस महिला की ओर इशारा किया। वहाँ?
मैं बस उसे दूर जाना चाहती थी। वह लंगड़ाते हुए उस जगह पहुँची जहाँ मैंने उसे इशारा किया था, और वह इतनी दूर चली गई कि मैं उसे अब और नहीं देख सकता था। मैं इस विचार से घबरा गया कि वह फिर से मेरे सामने आ सकती है।
और फिर, उसी क्षण, मैंने उस महिला को दूर से चिल्लाते हुए सुना। वह यहाँ नहीं है। उसके बाद, मुझे कुछ भी याद नहीं है। जब मैं होश में आया, तो मैंने पाया कि मेरे पड़ोसी ने मुझे जमीन पर बेहोश पाया, और वह मुझे घर ले आया।
मुझे आस पास वाले बूढ़े लोगो से यह पता चला, कि 1998 में, गौरी नाम की एक 32 वर्षीय महिला थी। उसकी एक 10 वर्षीय बेटी थी जो वह की एक प्राइवेट स्कूल में भी जाती थी। एक दिन, अपने दोस्तों के साथ खेलते समय वह लाइब्रेरी के पास उसका एक्सीडेंट हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। गौरी अपने बच्चे को खोने के बारे में नहीं सोच पायी, और वस् सदमे में वह गौरी वही लाइब्रेरी के छत के ऊपर से कूद कर अपनी जान देदी । उसके बाद गौरी का भूत लाइब्रेरी की और आसपास के इलाके में घूमता हुआ दिखाई दिया, अपने खोए हुए बच्चे की तलाश में। आज भी वह कभी कभी वह रस्ते पर दिखाई देती है।
“जब आप एक माँ होती हैं, तो आप अपने विचारों में कभी अकेले नहीं होते हैं। एक माँ को हमेशा दो बार सोचना पड़ता है, एक बार खुद के लिए और एक बार अपने बच्चे के लिए। ” – सोफिया लोरेन
Ak apahij aurat ki aatma jo aaj bhi bhatak rahi hai – एक अपाहिज औरतकी आत्मा जो आज भी अपनी बच्ची को ढूंढ रही है ऐसी और कहानी पढ़ने के लिए बने रहिये हमे साथ
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